मन को बदला जा सकता है। तंत्र कहता है कि शरीर में सात चक्र है और मन को उनमें से किसी भी चक्र पर स्थिर किया जा सकता है। प्रत्येक चक्र का अलग गुण है। और अगर तुम एक विशेष चक्र पर एकाग्र करोगे तो तुम भिन्न ही व्यक्ति हो जाओगे।
जापान में एक सैनिक समुदाय हुआ है, जो भारत के क्षत्रियों जैसा है। उन्हें समुराई कहते है, उन्हें सैनिक के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। और उन्हें पहली सीख यह दी जाती है कि तुम अपने मन को सिर से उतार कर नाभि-केंद्र के ठीक दो इंच नीचे ले आओ। जापान में इस केंद्र को हारा कहते हे। समुराई को मन को हारा पर लाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। जब तक समुराई हारा को अपने मन का केंद्र नहीं बना लेना है तब तक उसे युद्ध में भाग लेने की इजाजत नहीं है। और यही उचित है। समुराई संसार के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में गिने जाते है। दुनिया में समुराई का कोई मुकाबला नहीं है। वह भिन्न ही किस्म का मनुष्य है, भिन्न ही प्राणी है; क्योंकि उसका केंद्र भिन्न है।
वे कहते है कि जब तुम युद्ध करते हो तो समय नहीं रहता है। और मन को समय की जरूरत पड़ती है। वह हिसाब-किताब करता है। अगर तुम पर कोई आक्रमण करे और उस समय तुम्हारा मन सोच-विचार करने लगे कि कैसे बचाव किया जाए, तो तुम गए; तुम अपना बचाव न कर सकोगे। समय नहीं है; तुम्हें तब समयातित में काम करना होगा। और मन समयातित में काम नहीं कर सकता है। मन को समय चाहिए। मन को समय चाहिए। चाहे कितना भी थोड़ा हो, मन को समय चाहिए।
नाभि के नीचे एक केंद्र है जिसे हारा कहते है; यह हारा समयातित में काम करता है। अगर चेतना को हारा पर स्थिर किया जाए और तब योद्धा लड़े तो वह युद्ध प्रज्ञा से लड़ा जाएगा। मस्तिष्क से नहीं। हारा पर स्थिर योद्धा आक्रमण होने के पूर्व जान जाता है के आक्रमण होने वाला है। यह हारा का एक सूक्ष्म भाव है। बुद्धि का नहीं। यह कोई अनुमान नहीं है; यह टेलीपैथी है। इसके पहले कि तुम उस पर आक्रमण करो, उसके पहले कि तुम उस पर आक्रमण करने की सोचो। वह विचार उसे पहुंच जाता है। उसके हारा पर चोट लगती है और वह अपना बचाव करने को तत्पर हो जाता है। वह आक्रमण होने के पहले ही अपने बचाव में लग जाता है। उसने अपना बचाव कर लिया।
कभी-कभी जब दो समुराई आपस में लड़ते है तो हार-जीत मुश्किल हो जाती है। समस्या यह होती है कि कोई किसी को नहीं हरा सकता। किसी को विजेता नहीं घोषित कर सकता। एक तरह से निर्णय असंभव है; क्योंकि आक्रमण ही नहीं हो सकता। तुम्हारे आक्रमण करने के पहले ही वह जान जाता है।
मन को जिस चक्र पर केंद्रित करने का अभ्यास कर लोगे मन ठीक वैसे ही परिणाम देने शुरू कर देगा। अतः मन को बदला जा सकता है यही सत्य है।
ओशो के प्रवचन से साभार।