मैं क्रिया योग तथा 10 महाविद्या का साधक रहा हूं! इस दौरान मैंने अपने आप को निम्नलिखित चरणों से होकर गुजरते हुए महसूस किया है!
उत्सुकता की प्रथम अवस्था:
एक किशोर के रूप में मैं जिद्दी तथा परिणामों की परवाह न करने वाला शख्स था! ईश्वर के प्रति मेरा दृष्टिकोण अज्ञेयवादी ही अधिक था! एक दिन अचानक ही एक हिमालयन योगी का घर आना हुआ! उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मैंने उनसे दीक्षा लेना स्वीकार किया! आज भी यह सोच कर हैरान होता हूं कि कैसे उस दिन मेरा विद्रोही मस्तिष्क दीक्षा के लिए राजी हो गया !उन्होंने मुझे एक बीज मंत्र दिया था एवं बिना किसी बंधन के उस बीज मंत्र के साथ 15 मिनट प्रतिदिन ध्यान करने का सुझाव दिया ! एक यूनिवर्सिटी स्टूडेंट के रूप में ध्यान अन्य मनोरंजन की गतिविधियों से अधिक कुछ न था! हां, परंतु प्रतिदिन 15 मिनट मैं ध्यान अवश्य किया करता था! प्रथम 2 वर्षों में मैंने अपने आप में कुछ सकारात्मक मनोवैज्ञानिक परिवर्तन अनुभव किए! अब मैं अधिक शांत तथा बुद्धिमान दिखता था!
सिक्स्थ सेंस की दूसरी अवस्था:
जीवन सामान्य रूप से चल रहा था कि अचानक एक रात हॉस्टल में सोते हुए एक अजीब स्वपन घटित हुआ! बहुत लंबे समय तक मेरा मस्तिष्क दूर किसी दस्तावेज में लिखे कुछ शब्दों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था ! काफी लंबे संघर्ष के पश्चात उन शब्दों को जोड़कर एक वाक्य उभरा, जैसे ही मैंने वाक्य के अर्थ को आत्मसात किया, झट से मेरी नींद खुल गई! एक हफ्ते के पश्चात मैं यूजीसी नेट की परीक्षा में शामिल हुआ! मेरी हैरानी का उस वक़्त कोई ठिकाना नहीं रहा जब मैंने 40 अंकों के प्रश्न के रूप में सपने में आये दस्तावेज को पाया ! उस प्रश्न को मैंने पहले ही तैयार कर लिया था, यद्यपि उसके पेपर में आने की सम्भावना के बारे आश्वस्त बिलकुल भी न था! मैं उस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया था !तत्पश्चात इस प्रकार केअनुभवों का सिलसिला बढ़ता चला गया एवं मैं मेरी दुनिया बदलती चली गई !मैं डर सा गया था ,मुझे नहीं पता था कि जो मेरे साथ हो रहा है वह उचित है अथवा नहीं! कड़ी मशक्कत के पश्चात मैंने उस योगी को पुनः ढूंढा एवं अपनी विचित्र परिस्थिति के बारे में उन्हें अवगत करवाया! यह सुनकर वह पहले तो भावुक हुए, फिर मेरी आंखों में झांकते हुए बताया कि इसे पैरानॉर्मल स्किल के रूप में जाना जाता है! उनके अनुसार संत परंपरा में इस प्रकार के अनुभव को बहुत भाग्यशाली माना जाता है कि आपने अपने पूर्व जन्मों की तपस्या का खजाना ढूंढ निकाला! परंतु साथ में उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह मात्र शुरुआत है ! सुनकर कुछ आश्चर्य हुआ परंतु मेरी दुनिया बदल चुकी थी!
जिज्ञासा की तृतीय अवस्था:
इस अवस्था में मैं बहुत पढ़ा, कई योगियों से मिला, विभिन्न प्रयोग करता चला गया, जो हाथ लगा अजमाया! मेरी स्थिति उस व्यक्ति के समान थी जिसे एक नया खिलौना मिल गया था एवं जो इस खिलौने के साथ प्रत्येक व्यक्ति एवं मित्र के पास भाग रहा था ! मैंने डॉक्टर ब्रायन वेइस से लेकर स्वामी योगानंद, विवेकानंद, स्वामी राम द्वारा रचित हिमालयन योगियों एवं योग पर लिखित पुस्तकों का अध्ययन किया; मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, साहित्य का गहन अध्ययन किया! इसी दौरान क्रिया योग ध्यान की वैज्ञानिक विधि में मेरी दीक्षा हुई! अब मानो यात्रा के लिए मेरे पास लड़ाकू विमान आ गया था! ध्यान धीरे- धीरे गहरा होता गया, परंतु मैं अपने जीवन मैं संतुलन बनाकर शांत जीवन जीता चला गया!
वास्तविक बोध की अवस्था:
प्रत्येक दिन सुबह शाम नियमित रूप से मैं ध्यान करता रहा! एक दिन विचित्र घटना घटी! मई माह के उस दिन को कभी नहीं भूल सकता !उस दिन ध्यान में मेरा मन पूर्णतया रुक गया! विचार शून्य. शिथिल, गहन मौन कि अवस्था में लीन हो गया! ध्यान से जब उठा पाया साडे 3 घंटे का समय गुजर चुका था, मुझे तो यूं लगा कि बमुश्किल आधा घंटा ही हुआ होगा ! उसके बाद प्रत्येक दिन ज्यों ही मैं ध्यान में बैठता, समय एवं स्वयं को खो बैठता! सुबह के समय तो मुझे अलार्म लगाना पड़ता, कि कहीं ऑफिस के लिए लेट ना हो जाऊं! इसी दौरान एक अजीब सी अंतरध्वनि मेरे कानों के भीतर गूंजने लगी! यह एक मंद सी गूँज थी, एक नाद सा, जो अनवरत चलायमान था!
जब भी मैं एकांत में बैठता, इस ध्वनि में खो जाता! मेरे मित्रों ने मुझ में परिवर्तन अनुभव किया! कईयों ने सलाह दी कि मैं एक बार अस्पताल हो लूँ ! मैंने भी टेनाइसिस नामक एक बीमारी के बारे में सुना था जिसमें कान में ध्वनि सुनाई देती है! कुछ डरा सा, कुछ सहमा सा, मैं संतो से मार्गदर्शन की प्रार्थना कर रहा था! नाव मंझधार में अटक गयी थी, किनारा कहीं दिखता नहीं था!
उसी समय चमत्कारी तरीके से एक अन्य संत का अनायास ही जीवन में प्रवेश हुआ! उनको अधिक बताने की आवश्यकता न पड़ी! मात्र एक बार बताया एवं उन्होंने आंखों में झांक कर देखा! उसके पश्चात बोला, “नौकरी क्यों करता है?”
“रोजी रोटी के लिए!”
“बहुत अच्छे” कहकर वह मौन हो गए !15-20 मिनट रुकने के पश्चात उन्होंने मुझे आश्रम के ध्यान कक्ष में जाने का आदेश दिया! वह अद्वितीय घटना थी ! इस प्रकार मेरी यात्रा वास्तविक गुरु के चरणों में जा ठहरी थी! जिसे स्वयं अट्ठारह वर्षों से प्राप्त करने का प्रयास कर रहा था, वह तत्क्षण ही घटित हो गया! प्रभु कि माया विचित्र है!
इस यात्रा को यहां अनुभव करने का उद्देश्य अपने लिए शिष्य अर्जित करना बिल्कुल भी नहीं है! मैं भी आप के समान ही अंतर्विरोध से जुड़ा हुआ एक आम आदमी हूं! मेरे गुरुओं द्वारा मुझे इन विद्याओं को किसी को भी आगे बताने के लिए अधिकृत बिलकुल भी नहीं किया है! परंतु प्रेरणा का आदेश जरूर दिया है! इस यात्रा से आपके जीवन में यदि ध्यान एवं अध्यात्म के प्रति जाग्रति घटित होती है तो मैं अपने उद्देश्य को सफल मानूंगा!