सरकारें बहुत से नोट छाप कर गरीबी क्यों नहीं खत्म कर सकती है?

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क्योंकि इससे गरीबी खत्म नहीं होगी बल्कि और बढ़ेगी!

आप सोचेंगे क्या मूर्खों वाली बात  है पैसा बढ़ने से तो गरीबी कम होनी चाहिए उल्टा वो बढ़ेगी कैसे?

यही तो अर्थशास्त्र का कमाल है! आप जितना पढ़ेंगे, उतने ही प्रभावित होंगे।

मान लीजिए सरकार ने अतिरिक्त नोट छापे और सभी को 1 करोड़ रुपये दिए।

अब जब मेरे पास 1 करोड़ है, तो मैं अपनी नौकरी छोड़ दूंगी और घर पर बैठूँगा , मेरे जैसे सभी काम करने वाले नौकरीशुदा लोग घर पर रहेंगे, इसलिए सभी कंपनियां, कारखाने, व्यवसाय बंद हो जाएंगे और सभी सेवाएं ठप्प हो जाएंगी।

मैं सब्जी खरीदने बाजार जाऊंगा  लेकिन सब्जी बेचने वाले के पास भी एक करोड़ रूपये है तो वो क्यों सब्जी बेचेगा? वही हाल  किराना दुकान वाले बनिया का होगा। आखिर सब्जी बनाने के लिए भी पड़ोसन को प्याज देकर उससे टमाटर लाना पड़ेगा और तरकारी बनानी पड़ेगी।

अब जबकि किसान के पास करोड़ रुपये हैं, तो वह भी खेत में क्यों मेहनत करे? धीरे-धीरे सभी व्यवसायों में यही हाल होगा!

कोई भी काम काज नहीं करेगा इसलिए जितने भी संसाधन उपलब्ध है उन्हें एक तो काफी महंगे दामों में बेचा जाएगा या फिर खुदके उपयोग के लिए बचा के रखा जाएगा। इससे कालाबाजारी बढ़ेगी। करोड़ रुपए तो होंगे लेकिन आप कोई वस्तु या सेवा नहीं खरीद पाएंगे।

शायद वस्तु विनिमय प्रणाली (तुम मुझे टमाटर दो, मैं तुम्हे प्याज दूंगी) पुनः अस्तित्व में आएँगी।

आपके नोटों का न तो कोई मूल्य होगा न ही कोई उपयोग!

हा शायद आप सर्द दिनों में इन नोटों से अलाव जला सकते है 😉

एमबीए के दौरान, अर्थशास्त्र की प्राध्यपिका ने हमें “वेलोसिटी ऑफ़ मनी” अर्थात “मुद्रा की गति” के बारे में एक गजब बात बताई थी।

मुद्रा की गति वह आवृत्ति है जिस पर मुद्रा की एक इकाई का उपयोग सामानों और सेवाओं को खरीदने के लिए किया जाता है, जो समय की एक विशिष्ट अवधि में उत्पादित होती हैं। दूसरे शब्दों में, प्रति यूनिट सामान और सेवाओं की खरीद पर खर्च की जाने वाली संख्या। यदि धन की गति बढ़ रही है, तो अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों के बीच अधिक लेनदेन हो रहे हैं।

ऊपर लिखी हुई परिभाषा सिर के ऊपर गयी हो तो इसे सरल भाषा में उदाहरण के साथ समझिए:

“मान लीजिए कि मैंने एक अलमारी में ₹100 रखे है, तो इसकी कीमत ₹100 होगी, लेकिन अगर मैं उसी ₹100 की सब्जी लाती हूँ, तो मेरे पास ₹100 की सब्ज़ी है और सब्जीवाले के पास ₹100 की नोट मतलब कुल उपयोग ₹200 का; वैसे ही अब सब्जीवाला इस ₹१०० का डेरीवाले से दूध, दही लेता है तो एक ही नोट का कुल उपयोग हुआ ₹300 का! इसी तरह वह ₹100 की नोट पुरे बाजार में घूमेगी और इस रुपये को ‘गती’ / ‘वेग’ / ‘वेलोसिटी’ मिलेगी। जितनी ज्यादा मुद्रा की गति उतना ज्यादा उसका उपयोग फिर शायद सिर्फ एक ₹100 की नोट से लाखो रुपयों का लेनदेन भी हो सकता है।”

इसलिए गरीबी को मिटाने के लिए अधिक नोट छापने के बजाय मौजूदा नोटों को गति देने की आवश्यकता है। इसके लिए नई नौकरियों, व्यवसायों, कारखानों और नई सेवाओं के साथ-साथ इन सभी वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करने के लिए ग्राहकों की आवश्यकता होती है।