गियर बदलने से गाड़ी के भीतर क्या परिवर्तन होता है और गियर कैसे काम करता है ?

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आपकी जानकारी के लिए बता दूं गाड़ियों में दो प्रकार का गियर सिस्टम होता है

मैनुअल गियर सिस्टम, प्रकार की गाड़ियों में गियर चेंज करने के लिए गाड़ी के अंदर एक लिवर होता है गाड़ी की स्पीड कम या ज्यादा रखने के लिए हम इसे हाथ से चेंज करते हैं गाड़ियों की शुरुआत से ही हाथ से गियर चेंज करने वाली तकनीक का इस्तेमाल होता आया है, इस प्रकार की गाड़ियों में अलग-अलग स्पीड में गाड़ी चलाने के लिए हमें गियर चेंज करने पड़ते हैं गियर चेंज करने के लिए हमें अपने उल्टे पांव (left side leg) से सबसे पहले गाड़ी की क्लच को दबाना पड़ता है क्लच के दबाते ही गियर लीवर फ्री हो जाता है तब हाथ से गियर लीवर पकड़कर पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पांचवा, या छठा, गियर हम गाड़ी की स्पीड के हिसाब से डाल सकते हैं।
ऑटोमेटिक गियर सिस्टम, इन इन गाड़ियों की शुरुआत हुए कुछ ही समय हुआ है धीरे धीरे यह लोगों में लोकप्रिय होती जा रही है इस प्रकार की गाड़ियों में गियर चेंज करने का काम एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस करती है जिसे हम साधारण भाषा में गियर गन, कहते हैं, सबसे बड़ी खूबी यह है इन गाड़ियों में क्लच पैडल नहीं होता है केवल दो ही पैडल होते हैं एक्सीलेटर का और ब्रेक का जिसके लिए हमें केवल एक ही पैर का इस्तेमाल करना पड़ता है राइट साइड वाली पैर का और दूसरी बात गाड़ी चलाते समय हमें बार-बार हाथ से गियर चेंज करने का झंझट भी नहीं होता इस प्रकार की गाड़ियों में केवल गियर लीवर का इस्तेमाल गाड़ी को रिवर्स करने के लिए होता है कुछ महंगी गाड़ियों में किसी प्रकार का लीवर नहीं होता इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक पैनल का यूज़ होता है जिसमें कंट्रोल स्विच होते हैं,
अब आते है सवाल पर, गियर बदलने से गाड़ी में होने वाले बदलाव, वास्तव में हर तरह की गाड़ी में स्पीड को कम या ज्यादा करने के लिए गियर बॉक्स का इस्तेमाल होता है

 

 

 

 

कुछ इस तरह का.

इसकी संरचना हर गाड़ी में अलग तरह की हो सकती है लेकिन इस में यूज होने वाले गियर पार्ट्स लगभग एक जैसे ही होते हैं गियर बॉक्स में छोटे-बड़े कई साइज के गियर होते जिसे आम भाषा में गरारी भी कहते हैं इस गियर बॉक्स का सीधा संबंध गाड़ी के इंजन से होता है इन दोनों का आपस में कनेक्ट करने के लिए क्लच प्लेट का इस्तेमाल होता है क्लच प्लेट एक फाइबर से बनी प्लेट होती है जो क्लच सेट में लगी स्प्रिंग के जरिए गियर बॉक्स और इंजन का आपस में कंप्रोमाइज करती रहती है जब हम गाड़ी का क्लच दबाते हैं तो क्लच प्लेट क्लच सेट से फ्री हो जाती है इंजन अपनी स्पीड पर चलता रहता है लेकिन क्लच प्लेट फ्री होने की वजह से गियर बॉक्स में लगी सारी गरारी भी फ्री हो जाती हैं जिसकी वजह से हम गाड़ी के आसानी से गियर चेंज कर लेते हैं जब हम क्लच से पैर हटाते हैं तब क्लच सेट क्लच प्लेट के लिए जकड़ लेता है इस प्रकार वह क्लच प्लेट गियर बॉक्स के लिए स्पीड देने लगती है और गियर बॉक्स एक्सेल रोड के द्वारा गाड़ी के पहियों से जुड़ा रहता है जिससे हम गाड़ी धीमी या तेज चलाते रहते हैं गियर बॉक्स में अलग अलग स्पीड के लिए छोटे बड़े अलग गियर होते हैं इन्हीं के मेलजोल से हम गाड़ी की स्पीड कम और ज्यादा करते रहते हैं

अब बात करते हैं दोनों में से कौन सी बेहतर है,

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी गाड़ियों में गियर बॉक्स होता है फर्क इतना है मैनुअल गाड़ी में व्यक्ति को हाथ से गियर चेंज करना पड़ता है, जबकि “ऑटोमेटिक गाड़ी में यह काम एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस करती है ऑटोमेटिक गाड़ियों में भी गियर चेंज होते हैं लेकिन यह सब सेंसर और गियर चेंज डिवाइस के द्वारा कंट्रोल होता है।

 

 

 

 

 

 

मैनुअल में परिस्थिति के हिसाब से बार-बार क्लच दबाना पड़ता है और गियर चेंज करना पड़ता है जो कभी-कभी थका देने वाला अनुभव होता है बार-बार क्लच दबाने की वजह से गाड़ी की माइलेज पर भी फर्क पड़ता है।

ऑटोमेटिक गाड़ी क्लच ना होने की वजह से सफर को ज्यादा आरामदायक बनाती है सफर में थकान ना के बराबर होती है और स्पीड कंट्रोल करने के लिए सेंसर स्वयं इंजन के लिए पर्याप्त लोड देता है जिस वजह से गाड़ी माइलेज भी अच्छा देती है लेकिन ऑटोमेटिक गाड़ी में एक दोष भी है किन्ही परिस्थितियों में अगर ऑटोमेटिक गाड़ी बंद हो जाती है या स्टार्ट नहीं होती तब आप उसे धक्का लगाकर स्टार्ट नहीं कर सकते भारत में हर जगह कुशल मैकेनिकों की कमी की वजह से इस प्रकार की गाड़ियों को लिफ्ट द्वारा या टोचन द्वारा या तो कंपनी पहुंचाना पड़ता है या कंपनी से ही मैकेनिक बुलाना पड़ता है वहीं इसके विपरीत मैनुअल गाड़ियों के लिए धक्का लगाकर स्टार्ट किया जा सकता है