भारत में जगह-जगह पर मंडियां लगी दिख जाती हैं. कहीं पर ताज़े फलों की मंडी होती है, तो कहीं पर सब्जियों की. इन दोनों प्रमुख मंडियों के अलावा भारत में फूल मंडी, खोवा मंडी, साप्ताहिक मंडियां भी देखने को मिल जाती हैं.
हालांकि अगर कोई आपसे कहें कि एक मंडी दुनिया में ऐसी भी है जहां सब्जी-फल नहीं बल्कि बंदूकें और बम बेचे जाते हैं तो आपको कैसा लगेगा?
पेशावर के कुछ ही दूरी पर पहाड़ियों से घिरा एक कस्बा है. दशकों से यहां आपराधिक गतिविधियां हो रही हैं. हालांकि यह जगह पूरे विश्व में हथियारों की कालाबाजारी के लिए मशहूर है, लेकिन इसे तस्करी, ड्रग्स के धंधे के लिए भी जाना जाता है. यहां पर कार चोरी से लेकर विश्वविद्यालय की फेक डिग्रियां तक बनाई जाती हैं. यहां दर्जनों हथियार के कारखाने हैं, जहां चीनी पिस्तौल की क्रूड कॉपियों से लेकर अमेरिका की एम 16 ऑटोमैटिक राइफल और क्लाशिनिकोव राइफल तक बनती हैं.
इन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार से बेहद ही कम कीमत में बेचा जाता है. कहा जाता है कि दुनिया भर में सबसे महंगी राइफलों में से क्लाशिनिकोव दर्रा अदमखल बाजार में स्मार्टफोन से भी सस्ते दामों में मिल जाती है. यह शहर नेशनल हाइवे के साथ फैला हुआ है. इस बाजार में केवल हथियार नहीं बिकते.
यहां सड़क के दोनों किनारों पर कई दर्जन ऐसी दुकानें हैं जहां पर वो सभी चीजें मिलती हैं जो दुनियां के ज्यादातर देशों में प्रतिबंधित हैं. जैसे की, हेरोइन, गांजा, चरस आदि. इसके अलावा यहाँ पर वह हथियार भी मिल जाएंगे जो बहुत ही दुर्लभ हैं.
इस शहर का इतिहास खून से भरा हुआ है. सबसे पहले इस शहर ने खून देखा जब ब्रिटश आर्मी और यहां के गांव वालों की लड़ाई हुई. उसके बाद 40 के दश्क में इस शहर में पठानों और सिखों का खून बहा.
दिलचस्प बात तो यह है की यह शहर है तो पाकिस्तान में, मगर यहां पर उनका कानून नहीं चलता. इस शहर के पहले जो पुलिस चौकी पड़ती है वह शहर में घुसने से पहले ही चेतावनी दे देती है की इस शहर में पाकिस्तान का कानून नहीं चलता और पाकिस्तान सरकार आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं लेती! इस पूरे इलाके में पश्तूनवाली लोगों का कानून चालता है. वही यहां पर हर चीज का ख्याल रखते हैं.
यहां एंटी एयरक्राफ्ट गन से लेकर अत्याधुनिक हथियार सब्जियों की तरह ढेर के ढेर में बिकने के लिए मिलते हैं. यहां पर मंडी तो पहले भी लगती थी जिसमें तस्करी करने वाले और चोर डकैत अपने सामानों को बेचने औऱ खरीदने आते थे. इस मंडी में शुरू से हथियार नहीं मिलते थे. यहां पर पहले चोरी की गाड़ियां और घर का सामान मिला करता था.
1980 में शुरू हुए इस बाजार में रौनक तब आई जब मुजाहिदीनों ने अफगानिस्तान में सोवियत संघ से लड़ने के लिए यहां से हथियार खरीदना शुरू कर दिया. इसके बाद यहां पर पाकिस्तानी तालिबान का कब्जा हो गया और उसका अपना कानून चलने लगा. हालांकि बाद में नवाज शरीफ की सरकार आने के बाद से यहां पर कुछ सख्ती की गई जिससे हथियार बनाने की अवैध धंधे में लगे लोग नाराज भी हो गए, लेकिन पाकिस्तान में अभी तक अवैध हथियारों का खुलेआम व्यापार जारी है जो आतंकवाद को बढ़ाने का काम कर रहा है.
इस दर्रा आदम खेल में चल रहे इस कारोबार को सरकारी संरक्षण प्राप्त है. यही नहीं, यहां के लोगों की आजीविका का यह सबसे बड़ा जरिया है और इस कारोबार में बच्चों से लेकर बड़े तक सब शामिल हैं. इस पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था केवल इसी कारोबार पर टिकी है.
यहां हर तरह के ऑटोमैटिक वैपन को जांचने के लिए बाकायदा शूटिंग रेंज भी बनी है, जो यहां पर तैनात फोर्स की देखरेख में रहती है. यहां से आप किसी भी तरह के हथियार को चलाकर देख सकते हैं. यहां पर पाकिस्तान सेना की गार्जियन यूनिट का हैडक्वार्टर भी है और पाकिस्तान सेना इस पूरे इलाके पर अपनी निगाह रखती है.
एक वक्त में यह बाजार पाकिस्तान की सबसे चर्चित और बड़ी मंडियों में से एक था. दूसरे देशों से सैलानी इस मंडी में घूमने आते थे. अफगानिस्तान के सभी आतंकवादी यहीं से हथियार लेकर जाते थे. जब से अल कायदा, तालिबान का लगभग सफाया हो गया है, तब से इस बाजार की भी रौनक खत्म हो गई और इस बाजार के कारीगर बेरोजगार हो गए हैं. हालांकि बंदूकें तो आज भी यहां पर धड़ल्ले से बिक रही हैं. पहले यहां पाकिस्तान से परमिट लेकर जाया जा सकता था, लेकिन अब सुरक्षा कारणों से यह सिलसिला बंद कर दिया गया है.