क्या सच में ट्रक की स्टेयरिंग पाइप से देशी कट्टे बनाये जाये है

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जब अचारसहिंता के बादल छा जाते हैं और लोगों को लाइसेंसी जमा करनी पड़ती है तो गाज़ियाबाद से लेकर गाज़ीपुर तक भैया लोगों का सच्चा साथी कौन – हमारा देशी तमंचा, जिन लोगों को मेक इन इंडिया केवल एक छलावा लगता है उनको इसे ज़रूर देखना चाहिए और कीमत 500 ₹ से लेकर 1200 ₹ तक बस।

बड़े काम की चीज़ है ये, बकौल राजा मिश्रा (जिन्हें प्यार से कन्याऐं सैफ़ू भी कहती हैं ) उन्नाव वाले के अनुसार आप तमंचे पर डिस्को भी कर सकते हैं।

आपके प्रश्न के लिये मुझे विशेषज्ञों के पास जाना पड़ेगा हमारे विशेषज्ञ हैं सरदार खान जी जो धनबाद के बंदूकबाज़ हैं और उनके हेड फोरज़र ने हम सबको बताया है कि साइकिल की डंडी नहीं यूज़ कर सकते क्योंकि वह फट कर फॅलावर बन जाती है इसलिए मजबूत डंडी की ज़रूरत पड़ती है बैरल बनाने के लिए इसलिए ट्रक के स्टेयरिंग को प्रयोग कर सकते हैं और उसके बाद भी चलाने वाले को बवासीर हो जाता है।

बात यहीं ख़त्म नहीं होती है हमारे मिर्ज़ापुर के कालीन भइया जिनकी कट्टों की फैक्ट्री है उनके क्वालिटी कंट्रोल ने गुड्डू भइया और बबलू भइया के डर से ये बताया था कि कुछ मारूति के स्टीयरिंग व्हील को भी ट्रक में बड़ी चतुराई से निकाल दिया गया था, जो बाद में फट गये।

मतलब ये सिद्ध होता है कि कट्टे बनाने के लिए ट्रकों का बनना बहुत जरूरी है।

वैसे तो कट्टों का इतिहास बहुत पुराना है मैंने मृणाल पांडे जी का एक लेख[1]पढ़ा था जिसके अनुसार

इसकी शुरुआत होती है पश्चिम उत्तर प्रदेश से मेरठ,बरेली और रामपुर जैसी जगहों पर जो एक समय इंडस्ट्रियल बेल्ट के रूप में विकसित हुए थे यहाँ रहने वाले लोहार बहुत सिद्धहस्त थे वे बेहतरीन क्वालिटी के खंजर, तलवारें और तोप अपने शासकों के लिए बनाया करते थे यहाँ यह कार्य बहुत प्रचलित था इस वजह से ही ये लोग धातुकर्म, धातुओं को जोड़ना, धातुओं को पीट पीट कर उनको मनचाहे उपयोग में लाना और उनके गुणों को बढ़ाना जैसे कार्य में वे निपुण थे इस वजह से ही जब अंग्रेजों का शासन था तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बेहतरीन कैंची, ताले, चाकू, तांबे के बर्तन, पीतल के बर्तन और दूसरे औज़ारों का उत्पादन हुआ। इन क्षेत्रों में बढ़े पैमाने पर घृणा जनित हिंसा प्रचलित थी इस वजह से लोगों को यह महसूस हुआ कि उन्हें तमंचे जैसे हथियार की ज़रूरत है।

असलियत में जब किसी गन की बैरल बनती है तो कोल्ड स्वैजिंग का प्रोसेस होता है इसमें एक ब्लैंक को एक डाई के बीचों बीच फसा दिया जाता है इसके तीन तरफ़ तीन अन्य डाई लगी होती है जो इसपे सतत रूप से प्रहार करती रहतीं हैं आप ऐसे मान सकते हैं कि तीन हथौड़े लगे हुए हैं लगातार प्रहार कर रहे हैं और ब्लैंक के दूसरे सिरे को बहुत अधिक बल से खींचा जाता है इस तरह बैरल तैयार होता है और बैरल की स्ट्रेन्थ को बनाए रखा जाता है।

कट्टों पर हुए शोध पत्र[2] के अनुसार ( आप मज़ाक मत मानिए) ये तीन तरह के होते हैं-

. 315/.303 सिंगल शॉट पिस्टल
. 38/.32 रिवाल्वर
12 बोर सिंगल शॉट पिस्टल
इन सभी के उत्पादन में स्टीयरिंग व्हील, एक्सल रॉड, वॉटर पाइप इनका प्रयोग होता है जो कि सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ख़तरनाक है लेकिन जो इन्हें चलाते हैं वो भी कम ख़तरनाक नहीं होते इसलिए मुकाबला बराबरी का रहता है। अगर आप राइटी हैं तो कभी भी हमेशा के लिए लेफ्टी और लेफ्टी हैं तो हमेशा के लिए राइटी हो सकते हैं।