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हर्षद मेहता के बारे में कई प्रचलित दंतकथा विराजमान हैं और कुछ एक उनको रॉबिनहुड जैसी छवि भी देती हैं। वास्तव में ये एक भ्रामक और तथ्यहीन छवि हैं जो चल चित्र और कुछ अति उत्साह में बनाई गई हैं।मैं व्यक्तिगत रूप से उनको रॉबिनहुड नहीं मानता। लेकिन आप स्वतन्त्र हैं।
किरदार – हर्षद मेहता को समझने के लियें पहले आपको 1992 के बाज़ार के बारे में थोड़ा बता देता हूँ।1992 में बैंक स्टॉक मार्केट में सीधे निवेश नहीं कर सकते थे इसलिए दो तरह के बाज़ार थे।
पहला स्टॉक मार्केट जो कम्पनी की हिस्सेदारी को ख़रीदने/ बेचने की जगह थी। इस बाज़ार में निवेशक व रिटर्न अधिक था।
इसके समानांतर एक और बाज़ार था जहाँ सरकारी बॉन्ड ख़रीदे और बेचे जाते थे। बॉन्ड पर सॉवरेन गारंटी होती हैं इसीलिये इनका रिटर्न कम होता था लेकिन वॉल्यूम अधिक होता था स्टॉक मार्केट से कई गुना अधिक। 1992 में सरकार अपने प्राजेक्ट्स के लियें पैसा इन बॉन्ड के द्वारा बनाती थी और सिर्फ़ बैंक ही इनको ख़रीद पाते थे।
इन दोनो तरह के बाज़ार में निवेश ब्रोकर के द्वारा किया जाता था। जहाँ स्टॉक मार्केट में अधिक ब्रोकर थे वही बैंक बॉन्ड के लियें कुछ एक ब्रोकर ही बाज़ार में थे। हर्षद मेहता आर॰बी॰आई॰ द्वारा दोनो बाज़ार में एक रेजिस्टर्ड ब्रोकर था।
हर्षद मेहता ने अपनी अनोखी भूमिका में दो तरीक़े अपनाये ग़बन करने के लियें।
पृष्ठभूमि – बैंक के बीच बॉन्ड की ख़रीद / बिकवाली कैसे होती थी उस समय इसको समझना भी ज़रूरी हैं।
बैंक को जब पैसे की ज़रूरत होती थी, तो वो रेजिस्टर्ज़ ब्रोकर के पास जाते थे और अपने बॉन्ड के लियें ग्राहक बैंक की खोज करते थे। वो ब्रोकर को बॉन्ड बेचने के लियें अधिकृत करते थे।
ब्रोकर को जब ग्राहक मिल जाता था तो वो अपने अधिकृत पत्र को दिखा कर ग्राहक बैंक से चेक ले लेता था। जब ये पैसा विक्रेता बैंक के पास आ जाता था तो विक्रेता बैंक एक रसीद जारी करता था इसको Bank receipt कहते थे। ग्राहक बैंक को जब रसीद प्राप्त हो जाती थी तो ट्रान्जेक्शन पूरा माना जाता था।
यहाँ दो बातें ख़ास हैं, जिसका फैयदा हर्षद मेहता ने उठाया:
१. ग्राहक और विक्रेता बैंक कभी एक दूसरे से बारे में नहीं जान पाते थे। सारा ट्रान्जेक्शन ब्रोकर के द्वारा होता था।
२. इस पूरी प्रक्रिया में, वास्तविक बॉन्ड पेपर ट्रान्स्फ़र नहीं किये जाते थे। पेपर विक्रेता के पास ही रहते थे और सिर्फ़ बैंक रसीद के आधार पर ग्राहक बैंक बॉन्ड पर अधिकार रख सकता था।( ये शायद इसलिये किया जाता था क्योंकि बैंक कुछ समय बाद बॉन्ड वापिस ख़रीद लेते थे, बॉन्ड एक अल्प कल्कि लोन कलैटरल की तरह इसका उपयोग करते थे) इसको रेडी फ़ॉर्वर्ड डील बोलते थे।
ऐक्शन – बैंक सीधे स्टॉक मार्केट में निवेश नहीं कर सकते थे तो हर्षद मेहता फ़र्ज़ी स्टैम्प पेपर पर ( तेलगी वाले स्टैम्प पेपर) बैंक को आश्वासन देता था की वो बेहतर रिटर्न वाला बॉंड विक्रेता उसके पास उपलब्ध हैं। बैंक हर्षद मेहता को पैसा ट्रान्स्फ़र कर देते थे और वो इसको बाज़ार में निवेश करता था।
अधिक धन होने की वजह से बाज़ार मनिप्युलेट हो जाता था, फिर ये बेच कर अपना मुनाफ़ा निकल कर बैंक को या तो पैसे वापिस कर देता था या नक़ली बैंक रसीद पकड़ा देता था।
Bank of Karad और Metropolitan Co-operative Bank नक़ली बैंक रसीद बनते थे हर्षद मेहता के लियें।
हर्षद मेहता ने ये कई बैंक से किया और बहुत अधिक मात्रा में बैंक का पैसा बाज़ार में लगाया।
ऐक्शन 2 – हर्षद मेहता स्टॉक बाज़ार का एक माना हुआ नाम था, कुछ उनको बाज़ार का जानकार भी कह सकते हैं। लेकिन जब वो कोई स्टॉक पर निवेश करता था तो बाज़ार में अफ़वाह भी उड़ाता था की ये शेयर undervalue हैं, और भविष्य में ऊपर जायेगा। फिर अपने ही निवेश से भारी मात्रा में ख़रीद करता था जिसकी वजह से स्टॉक में तेज़ी आती थी। और लोग उसकी भविषवाणी में विश्वास करते थे।
विडियोकॉन एक ऐसा ही शेयर था । एक और कम्पनी ACC का शेयर 4000% से भी अधिक हो गया था।