ये क्या कह दिया मियां ?
मैं इसकी कड़ी शब्दो मे निंदा करता हूँ। आपने सिर्फ साउथ इंडियन मूवीज को ही क्यों टारगेट किया। जबकि वास्तविकता तो ये है कि साउथ के ही नही बल्कि हॉलीवुड , बॉलीवुड , अरे यहाँ तक कि भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में भी हीरो को अपने व्यक्तित्व के हिसाब से ज्यादा बलशाली दिखाया जाता है , जो कत्तई गलत नही है क्योंकि हीरो का शाब्दिक अर्थ ही होता है वीर या बहादुर।
अब आपकी बातों को गलत और अपनी बात को सत्यापित करने के लिए कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहा
1 . चाहे किसी भी देश की और किसी भी भाषा की सुपरहीरोज़ वाली फिल्में हो , इसमे हीरो को लार्जर दैन लाइफ ही दिखाया जाता है। नही तो फिर सुपर हीरो होने का कुछ मतलब नही रह जाता न।
2 . चूंकि किसी भी फ़िल्म में एक हीरो पर मुख्य और सहायक विलेन कम से कम 200 होते है। अब उसे अगर बलशाली ना दिखाया जाएगा तो क्या वो अपनी माँ , बहन और महिला मित्र की इज्ज़त उनसे बचा पाएगा।
3 . लगता है आपने बांग्लादेशी हीरो अलोम बोगरा को नही देखा। जब वो सिरकिया पहलवान 10 – 10 मुस्टंडों को चुटकी में धूल चटा सकता है तो अपने साउथ वाले तो फिर भी अच्छी खासी सेहत वाले होते है। उनसे भी उम्मीद तो की ही जा सकती है।
लीजिए इनके छवि दर्शन भी कर लीजिए
देख रहे बंदे का स्वैग
फिर भी आपको लगता है कि साउथ के हीरोज को औकात से ज्यादा प्रभावशाली और बलशाली दिखाया जाता है , तो हो सकता है आप सही हो लेकिन फिर भी गलती आपकी ही है , क्योकि ऐसी फिल्मों का चुनाव आप ही करते हैं।
आपकी इस शिकायत को दूर करने के लिए आपको एक फ़िल्म सजेस्ट कर रहा हूँ। फ़िल्म का नाम है ” रत्सासन ” , जिसकी हिंदी डबिंग ” मैं हूँ दंडाधिकारी ” के नाम से यूट्यूब पर उपलब्ध है।
अब मैं इसका रिव्यु नही बताऊंगा लेकिन थोड़ी सी हिंट के नाम पर इतना बता सकता हूँ कि यह एक सायको थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री है जो आपको शुरू से लेकर आखिर तक बांध के रखती है।