भारत पेट्रोलियम को दुगना मुनाफा होने पर भी सरकार उसे क्यों बेचना चाह रही है ?

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यह प्रश्न सब जगह जोर शोर से उठता है। भारत सरकार, भारत पेट्रोलियम को क्यों बेच रहीं हैं। जबकि भारत पेट्रोलियम मुनाफे में हैं। आपने अपने प्रश्न में लिखा है कि भारत पेट्रोलियम दुगुने मुनाफे में हैं।

आपके प्रश्न का दुगुना मुनाफा मेरी समझ में स्पष्ट नहीं है कि आपने किस वर्ष को आधार बनाकर दुगुना मुनाफा होने की बात कही है। इसलिए मैं पांच वर्ष के अन्तराल में हुए मुनाफा परिवर्तन के आंकड़े पेश कर उन्हें आधार मानकर आपको कुछ तथ्य देता हूँ –

भारत पेट्रोलियम का मुनाफा वर्ष 2013-14 के लिए –

चित्रः भारत पेट्रोलियम वार्षिक रिपोर्ट 2014[1]

भारत पेट्रोलियम मुनाफा वर्ष 2018-19 के लिए –

चित्रः भारत पेट्रोलियम वार्षिक रिपोर्ट 2019[2]

विवरण (वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर) – 2014 में भारत पेट्रोलियम का मुनाफा 2642.9 था, जो वर्ष 2019 में बढ़कर 9779.9 हो गया जो लगभग 4 गुना अधिक है। वही 2013 और 2014 की तुलना करे तो 2014 में पिछले वर्ष से 30% कम था। वैसे ही 2019 और 2018 की तुलना करे तो 2019 में पिछले वर्ष से 20% अधिक था।

अब आता हूँ मुद्दे पर क्यों हो रहा है निजीकरण –

इस मुद्दे पर मैंने पहले एक प्रश्न का उत्तर दिया था जिसे आप देख सकते हैं प्रश्न – बीपीसीएल जो कि एक नवरत्न कंपनी का निजीकरण क्यो करने जा रहीं हैं सरकार। उस उत्तर में यही जबाब था कि निजी कंपनी के मुकाबले भारत पेट्रोलियम अपनी पूरी क्षमता का उपयोग बेहतर ढंग से नहीं कर पा रहीं हैं। आपको लगता है कि यहीं सरकार निजीकरण की तरफ जा रहीं हैं और आप वर्तमान सरकार को गाली देने की योजना बना रहे हैं तो टैग किए गए उत्तर को पढ़ लेना आपका भ्रम टूट जाएगा इस क्षेत्र में निजी कंपनी कौन लाया और किसने निजी कंपनी को भारत की सबसे बड़ी रिफाइनरी क्षमता वाली रिफाइनरी स्थापित करने के लिए अनुमति प्रदान की।

क्यो बेच रहे हैं –

  1. क्षमता का पूर्ण उपयोग – भारत पेट्रोलियम का निजीकरण किए जाने से अपनी रिफाइनरी की क्षमता का पूर्ण उपयोग कर पाएंगे क्योंकि वर्तमान समय में रिफाइनरी की क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है तो वहीं निजी क्षेत्र की कंपनी अपनी क्षमता का 110% उपयोग कर रहीं हैं।
  2. नव तकनीकी प्रयोग – सरकारी क्षेत्र के मुकाबले में निजी क्षेत्र में नव तकनीक को अपनाये जाने की प्रक्रिया अधिक लचीली होती है, ऐसे में नव तकनीक का प्रयोग किया जाना अति आवश्यक हो रहा है तो उससे भी अधिक आवश्यकता है, नियंत्रण और निर्णय में लचीलापन लाने की।
  3. अधिक लाभ से अधिक टैक्स – सरकारी कंपनी के मुकाबले में निजी कंपनी अधिक लाभ कमाती है, इसे कोई नकार नहीं सकता। अधिक लाभ यानी सरकार को अधिक टैक्स (टैक्स का उपयोग कहाँ होता है, इसकी आपको जानकारी होगी ही)।
  4. स्वतंत्रता – निर्णय की स्वतंत्रता प्रदान करना क्योंकि वर्तमान समय में सरकार का हस्तक्षेप अधिक है।

निष्कर्ष – कंपनी लाभ में अवश्य हैं। कंपनी किताबी लाभ कमा रहीं हैं जिसके कई कारण हैं सरकार इसे प्रतिस्पर्धा का बाजार बना दे तो 6 महीने बाद कंपनी के पास अपने कर्मचारियों को तनख्वाहें देने को पैसे नहीं होंगे यह अलग बात है। ऐसा भी सरकार कर दे तो विपक्ष उस बात का क्या जबाब देगा जिसमें कहता है सस्ता कच्चा तेल खरीदकर महंगा बेचता है।

विशेष – विनिवेश किए जाने से सरकार का 100% नियंत्रण समाप्त नहीं हो रहा है, सरकार इसे घटाकर अपना निवेश 49% तक ला सकती है किन्तु आवश्यकता होने पर इसे पुनः खरीद कर पुनः 51%भी कर सकती है इस कारण इसे अधिक हेय की दृष्टि से देखने की आवश्यकता नहीं है। किंतु 1991 के बाद से आज तक अपवाद के रूप में भी एक भी उदाहरण नहीं देखने को मिला कि सरकारी कंपनी ने निजी कंपनी को लाभ और क्रियान्वयन में कोई प्रतिस्पर्धा दे दी हो। इसलिए अभी तो निजीकरण का ही सोचा जा रहा है जिस दिन सरकारी कंपनी प्रतिस्पर्धा देने में कामयाब होगी उस दिन सरकार नए सिरे से भी सोच लेगी क्योंकि उस दिन निजी कंपनी की तंगहाली कारण उसे स्वयं को सरकार की रुचि से आत्म समर्पित करने के अतिरिक्त विकल्प उपलब्ध नहीं होंगे और ना ही ऐसी सरकारी कंपनी को कोई विदेशी कंपनियां भी प्रतिस्पर्धा देने के लिए तत्पर होगी।

मेरा सवाल – उत्तर पश्चिमी रेलवे (जयपुर जोन) ने सरकारी कंपनी द्वारा महंगी बिजली दिए जाने के कारण खरीदने से इंकार कर दिया था।[3] उन्होने कहा निजी कंपनी सस्ता देती है (निजी कंपनी की दरें सरकारी कंपनी से आधी हैं) तब सरकार ने उन्हें सस्ती बिजली दी, पर वर्तमान में रेल वे निजी कंपनी से आधी दर से बिजली ले रहा है। यानी सरकारी कंपनी अपना उत्पादन दूसरी सरकारी कंपनी को तो बेच नहीं सकती और आम आदमी को सरकार महंगी बिजली दे रही है, क्योंकि निजी कंपनी की बिज़ली उसकी पहुंच में हैं नहीं इसलिए। इसका भी निजीकरण क्यो नहीं किया जा रहा है? फिर सरकार को पता चल जाएगा कि कौन व्यापार कर रहा है? कौन सेवा और कौन संसाधनो सदुपयोग और दुरूपयोग? लोगों का भी पता चल जाएगा – सरकारी कंपनी की बिजली खरीदने को कितने लोग तत्पर हैं? यह सरकारी कंपनी के लिए भी खतरे की घंटी है किन्तु इस तरफ अब ध्यान नहीं देंगे। इस पर ध्यान तब दिया जाएगा जब सरकार इसका निजीकरण किए जाने का विचार कर रहीं होगी।

यहां बीपीसीएल का सरकार के पास इस समय 54% stake हैं जिसे शून्य करने की सोच रहीं हैं।