भूटान भारत का प्रोटेक्टोरेट (संरक्षित) स्टेट है । भूटान की विदेश नीति से जुड़े मामले भारत सरकार देखती है । भूटान की सुरक्षा भी भारतीय सेंना के जिम्मे है ।
सन 2017 में चायना ने भूटान की सरजमीं पर अवैध रूप से सड़क बनाने की कोशिश की थी डोकलाम इलाके में । इसी बात पर एस्केलेशन हुआ था भारतीय सेना ने वहां जा कर चायनीज पीएलए का काम रुकवाया था ।
डोकलाम विवाद यह चीन द्वारा किया गया अघोषित रूप से हमला ही था ।
हमारी भूटान के साथ संधि है कि अगर उन पर कोई अन्य देश ( नेपाल , चीन ) हमला करेगा तो हमारी सेना उनकी रक्षा करेगी ।
भूटान से पहले सिक्किम भी भारत का प्रोटेक्टोरेट स्टेट था किंतु उसका विलय भारत मे हो गया ।
जब नेपाल में राज शाही कायम थी तो नेपाल के राजा भी चाहते थे कि भारत के प्रोटेक्टोरेट स्टेट बन जाये किन्तु वहां के कम्युनिस्ट लोगों ने चायना से नजदीकी के चलते विरोध किया ।
इससे भी पहले सन पचास के दशक में तिब्बत के साथ ऐसी ही सन्धि थी । भारतीय सेना की कुछ टुकड़ियां ल्हासा में तैनात थी किन्तु नेहरू जी ने उन्हें 1958 में वापस बुलवाया क्योंकि वह चायना के विरोध में खड़े नहीं होना चाहते थे ।
भारत सरकार की सबसे बड़ी कूटनीतिक विफलता यह थी कि बंगलादेश बनवाने के बावजूद उसे भारत अपना प्रोटेक्टोरेट स्टेट नही बना पाया और इसके लिए काफी हद तक आईएसआई , चीन और सीआईए जिम्मेदार रही ।
इकहत्तर की लड़ाई के बाद नक्सलबाड़ी आंदोलन जोर पकड़ता है बंगाल में और फिर केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू होते हैं अगले पांच छह साल में इमरजेंसी लगाई गई और यही वह समय था जब डैन शाओ पिंग के नेतृत्व में चीन ने मुक्त व्यापार अपनाया ।
मेरे हिसाब से सत्तर अस्सी के दशक भारत के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण और नाज़ुक थे. यदि तब हमारे लोगों ने सही लोगों को चुना होता तो आज हम चीन की जगह होते ।