जैसा कि आप जानते हैं श्रीमद्भगवद्गीता हमारे वैदिक साहित्य का एक अनुपम ग्रन्थ है, भगवान श्रीकृष्ण की एक दिव्य वाणी है जिसमें हमारे सभी पारमार्थिक प्रश्नों का भलीभांति उत्तर दिया है। हम लोग इस ग्रुप के माध्यम से गीताजी का अनुशीलन करने में प्रवृत्त हुए हैं, अतः इसकी विशेषताओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, जो निम्न प्रकार है।
1) जो सच्चे हृदय से इसे समझकर अपने जीवन में उतारना चाहता है किसी भी समय इस ग्रुप को join कर सकता है।
2) यदि वह इसमें बतायी गई बातों से सन्तुष्ट न हो तो ग्रुप को छोड़ने में परम स्वतन्त्र है इसमें कोई संकोच की बात नहीं है।
3) इस चर्चा का आधार हमारे गुरुजनों द्वारा प्रतिपादित गौड़ीय वैष्णव सिद्धान्त हैं जिसके विषय में हमने पहले 40 कथाओं में श्रवण किया है, जिससे हमारा आधार मजबूत हो सके। चर्चा को सरल बनाने के लिए इन सिद्धान्तों से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा।
4) यदि प्रारम्भ में कुछ तथ्य समझ न आए, तो भी गीता श्रवण का फल तो मिलेगा ही तथा साथ ही हमारी ज्ञात सुकृति भी बनेगी जो हमारा परमार्थ पथ प्रशस्त करेगी। इसके अतिरिक्त, इसके नियमित श्रवण से, हरि-गुरु-वैष्णव की कृपा से धीरे-धीरे हमारा हृदय शुद्ध होने पर हमारी बुद्धि भी गीताजी को समझने में सक्षम हो जाएगी। अपने अनुभव के आधार पर वक्ता का यह दृढ़ विश्वास है।
5) नियमित रूप से श्रवण करने से भक्ति के प्रथम अङ्ग “श्रवण भक्ति” का स्वतः पालन हो जाएगा।
6) अनेक मापदण्डों के आधार पर गीता का प्रतिपाद्य विषय ‘शुद्ध भक्ति’ ही निर्धारित होता है । इस प्रकार की शुद्ध भक्तिपरक व्याख्या केवल गौड़ीय विचारधारा की ही अमूल्य देन है। इसी विचारधारा को गीता के माध्यम से समझने का प्रयास इस ग्रुप में किया जा रहा है।
7) भक्ति मार्ग में किसी भी थोड़े से प्रयास का भी नाश नहीं होता तथा मृत्यु रूपी महान भय से रक्षा हो जाती है- यही भगवान ने दूसरे अध्याय में कहा है- अतः गीताजी के अध्ययन से हमें इसी जीवन में इस भय से ऊपर उठकर, जो भक्ति का परम उद्देश्य है- भगवद्प्रेम- उसके लिए अभी से प्रयास कर लेना चाहिए।
8) गीता श्रवण के लिए हमने कुछ विशेष प्रयास नहीं किया है अतः यह मानना चाहिए कि यह अवसर हमारी अनन्त काल से चली आ रही कुछ विशेष सुकृतियों का फल है, जो स्वयं ही हमारे सामने इस ग्रुप के माध्यम से आकर उपस्थित हो गया है। अतः इस अवसर को छोड़ देना हमारी बहुत बड़ी परमार्थिक भूल होगी, जिसके लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी होंगे।
9) हरि-गुरु-वैष्णवों की कृपा इसी प्रकार सहजता से, बिना किसी विशेष यत्न के, हमारे सामने भक्ति के अनुकूल परिस्थिती का वेष धारण करके आती है- जिसे हमको आदर तथा कृतज्ञता पूर्वक स्वीकार करके उसे जीवन में धारण करना चाहिए- इससे हमारी भक्ति निरन्तर पुष्टता को प्राप्त होती है।
10) हरि-गुरु-वैष्णव जिस प्रकार वक्ता को प्रेरणा देकर उससे गीता के सिद्धान्तों की चर्चा करा रहे हैं- उसी प्रेरणा से वे श्रोतागणों के हृदय को क्रमशः शुद्ध करके, उनकी विचारधारा को परिष्कृत करके, भगवान की दिव्य वाणी का मर्म अर्थ उनके ह्रदय में प्रकाशित करायेंगे- यह वक्ता का दृढ़ विश्वास है- यदि आप नियमित रूप से, सरल हृदय से, बिना दोष दृष्टि के तथा भावपूर्ण हृदय से भगवद्गीता का श्रवण करेंगे।
11) इस पाठशाला में कोई शिक्षक नहीं है, केवल वक्ता तथा श्रोता है। श्रोताओं की भांति वक्ता भी गीता के गम्भीर अर्थों को धारण करने का प्रयास मात्र कर रहा है।
12) इस पाठशाला में कोई परीक्षा नहीं है, श्रवण करने से स्वयं ही अपने अनुभव के आधार पर यह जाना जा सकता है कि हमारा हृदय कितने परिमाण में शुद्ध होता जा रहा है।
13) यदि हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि हम भगवान की दिव्य वाणी का श्रवण कर रहे हैं, तो भगवान को भी हमारी बात सुननी ही पड़ेगी क्योंकि उनकी यही प्रतिज्ञा है कि जो मेरे साथ जैसे भाव रखता है, मैं भी उसके प्रति वही भाव रखता हूँ।
14) जिस व्यक्ति का उद्देश्य भगवद्प्रेम की प्राप्ति है वही इस पाठशाला में नियमित रूप से ध्यानपूर्वक श्रवण करेगा तथा केवल श्रवण मात्र से, अपनी श्रद्धा के अनुसार फल की प्राप्ति करेगा।
आप सभी से करबद्ध प्रार्थना
हम लोग आज ५ सितम्बर 2020 में अपनी *गीता पाठशाला* ग्रुप का एक वर्ष पूरा कर रहे हैं । इस एक वर्ष में हम लोगों ने श्रीमद्भगवद्गीता के छह अध्यायों का श्रवण किया तथा अभी छटे अध्याय का सारांश ( summary) चल रहा है , इस प्रकार हम जल्द ही ६ अध्याय की समाप्ति करेंगे जो इस पूरी गीता का लगभग एक तिहाई हिस्सा है (1–6), और अगले शष्टक ( 7–12) में प्रवेश करेंगे , जो अति महत्वपूर्ण है।
*गीता पाठशाला* ग्रुप में अभी हमारे लगभग 2600 सदस्य हैं, जबकि *गीता श्लोक लर्निंग* ग्रुप में 1300 सदस्य हैं। मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूं कि आपने एक वर्ष तक इस पाठशाला में रहकर अपूर्व धैर्य का परिचय दिया है तथा मुझे श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन करने में उत्साह प्रदान किया है। आशा है आगे भी आप इसी प्रकार गीता पाठशाला ग्रुप से जुड़े रहेंगे ।
हम लोग 10 सितंबर 2020 से श्रीमद्भगवद्गीता का छठा अध्याय श्रवण करके सातवें अध्याय में प्रवेश करेंगे जो हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि सातवें अध्याय से बारहवें अध्याय तक भगवान ने भक्तियोग की विस्तृत रूप से चर्चा की है| अतः आपसे अनुरोध है कि आप इस *गीता पाठशाला* ग्रुप में अधिक-से-अधिक लोगों को शामिल करें जिससे कि उन्हें भी परमार्थिक लाभ हो सके| इसके लिए इस ग्रुप का जो लिंक आपको नीचे भेजा जा रहा है, उसे आप अपनी कांटेक्ट लिस्ट में शामिल व्यक्तियों को भेज सकते हैं, जिससे वे ज्वाइन कर सके| हमारा उद्देश्य है – इस कलिकाल में शुद्ध भक्ति की जो धारा लुप्त प्राय हो गई है, उसे पुनः जाग्रत करना तथा सभी मनुष्यों को इस दुखमय संसार से पार होने के लिए तथा भगवान से प्रेम करने के लिए प्रेरित करना| *इस उद्देश्य की पूर्ति में मुझे आप सभी का सहयोग अपेक्षित है|*
अतः आपसे पुनः करबद्ध अनुरोध है कि आप इस लिंक को भेजने में थोड़ा भी संकोच न करें, क्योंकि हमारा कर्तव्य है कि सभी व्यक्तियों को श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से भगवान का परिचय हो| यदि किसी की इच्छा होगी, उसकी भक्ति उन्मुखी सुकृति प्रबल होंगी तो वह अवश्य ज्वाइन करेगा| हम इस लिंक को भेजकर कम-से-कम उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की ओर चलने का अवसर तो प्रदान कर ही सकते हैं| इस संबंध में हमने इस ग्रुप की जो विशेषताएं पहले भेजी थी, उन्हें आपकी जानकारी के लिए पुनः भेजा जा रहा है