उड़ रहे एयरोप्लेन का ईंधन ऊपर ही खत्म हो जाए तो क्या होगा ?

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अगर काफी ऊंचाई पर उड़ रहे वायुयान का ईंधन ऊपर ही खत्म हो जाए तो क्या होगा?

एक बार ऐसी घटना घट चुकी है, जब जहाज़ 41 हज़ार फिट की ऊंचाई पर 61 यात्रियों तथा 8 क्रू मेंबर को ले कर उड़ रहा था, तभी जहाज़ का ईंधन खत्म हो गया। ईंधन खत्म होने पर क्या हुआ, इसे जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।

आज के समय में यातायात का बड़ा साधन हवाई जहाज़ बन चुका है। प्रत्येक दिन विश्व भर में हज़ारों जहाज़ एक जगह से दूसरे जगह मुसाफिरों को लाने ले जाने का काम करती है। अगर हमें भी कहीं जाना होता है तो हम चाहते हैं, की जल्दी से जल्दी हम वहां पहुंच जाए। इसके लिए हमे ज़रूरत पड़ती है, सबसे तेज़ परिवहन सुविधा की। और आज के दौर में जो सबसे तेज़ परिवहन सुविधा है, वह हवाई जहाज़ के रूप में ही है। जो सफर आप ट्रेन से 2 दिन में करते है, जहाज़ आपको चंद घण्टो में पहुंचा देता है। इस कारण क्षमता होने पर जहाज़ सफर के लिए सब की प्राथमिकता बनता जा रहा है।

सुरक्षा की दृष्टि से भी जहाज़ में सफर करना सबसे सुरक्षित माना जाता है। आंकड़ो के अनुसार चार पहिए, ट्रेन, मेट्रो इत्यादि की तुलना में आज के समय में सबसे कम दुर्घटना हवाई जहाज में ही घटती है। लेकिन हम सभी जानते हैं कि जब घटती है, तो बहुत खतरनाक रूप ही देखने को मिलता है। फिर भी यह काफी सुरक्षित है।

कई बार ऐसा होता है कि हम गाड़ी से जा रहे हों और ईंधन खत्म हो जाए। हममें से कईयों के साथ यह घटना हुई भी होगी। लेकिन आप सबसे सुरक्षित और सफर के लिए सबसे शानदार माने जाने वाले माध्यम यानी हवाई जहाज़ से सफर कर रहे हों, और उसका ईंधन खत्म हो जाए तो आप क्या करेंगे? यकीनन, यह सुन कर ही हमारी जान निकल जाएगी, मृत्यु सामने दिखाई देने लगेगा।

लेकिन अमूमन ऐसा नही होता है क्यों कि एक जहाज़ के उड़ान से पहले काफी गहराई से जांच किया जाता है, फिर उसे उड़ान की अनुमति मिलती है। लेकिन इंसान तो इंसान ही है, गलती हो ही जाती है। ऐसी ही गलती 1983 में हुई थी और दर्जनों लोगों की जान जोखिम में पड़ गया था।

• क्या थी घटना?

23 जुलाई की उड़ान से पहले 22 जुलाई 1983 को ही यह जहाज़ एक उड़ान पूरी कर चुका था। अगली उड़ान से पहले इस जहाज़ का औपचारिक चांज भी किया जा चुका था। यहां जहाज़ के पायलट बदले गए। यहां दो बेहद ही अनुभवी पायलट कमान संभाल चुके थे। एक के पास 15,000 घण्टे उड़ान तथा एक के पास 7 हज़ार घण्टे उड़ान का अनुभव था।

यह एयर कनाडा का जहाज़ (Air Canada Flight 143) कनाडा का एक घरेलू विमान था। यह 23 जुलाई 1983 को 61 यात्रियों तथा 8 क्रू मेंबर्स को ले कर कनाडा के मॉन्ट्रियल के डोरवल इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ कर ये एडमोंटन के लिए चला। यह जहाज़ बोइंग 767- 233 था। यहाँ तक सब सामान्य था। अब जहाज़ लगभग 41,000 फिट की ऊंचाई पर उड़ रहा था। तभी ऐसी बात सामने आई कि सभी की सांसें अटक गई।

• क्या हुआ 41 हज़ार की ऊंचाई पर?

23 जुलाई 1983 को फ्लाइट 143 41 हज़ार की ऊंचाई पर कनाडा के रेड लेक, ओंटेरियो में उड़ रहा था। तभी कॉकपिट (पायलट जहां होते हैं) के वार्निंग सिस्टम से आवाज़ आने लगी। यह वार्निंग बता रहा था कि जहाज़ के बाएं हिस्से में ईंधन के प्रेशर संबंधित कुछ समस्या आ रही है। पायलट ने यह सोचा की कोई फ्यूल पम्प काम करना बंद लर दिया है। यह कोई बड़ी बात नही थी। फ्यूल पंप के बिना भी इंजन को ईंधन मिलता रहता है। इस कारण उन्होंने इस वार्निंग को नजर अंदाज करते हुए वार्निंग सिस्टम को बंद कर दिया।

एक और बात यह थी के जहाज में ईंधन के लेवल को बताने वाला मीटर काम नही कर रहा था। यह बात उड़ान से पहले पायलट को बता दिया गया था। लेकिन जहाज़ का जो कंप्यूटर मीटर था, वह काम कर रहा था। उसके हिसाब से जहाज़ में पर्याप्त ईंधन था। इस कारण इसे देख कर पायलट निश्चिंत हो कर जहाज़ को उड़ा रहे थे। अभी बांए वाले वार्निंग सिस्टम को बंद किए हुए कुछ ही समय हुआ था कि अचानक दाहिने इंजन का भी वार्मिंग अलार्म बज उठा। यह अलार्म बजते ही पायलट को कुछ गड़बड़ लगा। उसने जहाज़ को पास के ही विनिपेग एयरपोर्ट की ओर मोड़ दिया।

कुछ ही सेकेंड में बांए इंजन ने काम करना बंद कर दिया। इधर पायलट एक इंजन के साथ विनिपेग एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग के लिए एयर कंट्रोलर से बात करने लगे। लेकिन कुछ ही सेकेंड मे कॉकपिट का में एक और अलार्म बजा “सभी इंजन ने काम करना बढ़ कर दिया है”। सभी की सांसे रुक गई। बिना किसी पॉवर के, दोनो इंजन बंद होने पर जहाज़ को कैसे उड़ाए, उसकी जानकारी किसी ट्रेनिंग में नही दी गयी थी। बड़ी समस्या यह थी कि इंजन बंद होने से जहाज़ का अधिक्तर सिस्टम काम नही कर रहा था। इस कारण किसी से कोई बात भी नही हो पा रही थी।

जहाज़ के पास बैटरी के रूप मे मौजूद ऊर्जा उतना नही था, जिससे कि जहाज़ लैंड हो। एक मात्र सिस्टम रैम एयर टरबाइन के रूप में था। यह हवा की मदद से घूम कर कुछ ऊर्जा बना सकता था। जहाज़ अब तक 41 हज़ार से 35 हज़ार पर आ चुका था। अब जल्दी से जल्दी जहाज़ को कहीं लैंड करना था। बिना ईंधन के जहाज कंट्रोल करना बेहद मुश्किल था। पायलट में एक अनुभवी पायलट के पास ग्लाइडिंग का भी अनुभव था। इसलिए उन्होंने जहाज़ को ग्लाइडर में उपयोग किए जाने वाले तकनीक के सहारे उतारने का फैसला किया। जहाज़ को पायलट ने 410 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार पर ले आया था। दूसरी ओर पता चला कि जो सबसे नजदीक में जगह है, जहां जहाज़ उतर सकता था, वह एक बंद हो चुका रॉयल कनेडियन एयर फोर्स का एयरपोर्ट था। यहां अब मोटर ट्रैक बन रहा था। यह भी फिलहाल 19 किलोमीटर दूर था।

किसी तरह जहाज़ यहां तक आ गया। लेकिन समस्या यह थी कि जहाज़ बिल्कुल बंद था। इससे कोई आवाज़ नही आ रही थी। जिस कारण यहां मौजूद आसपास के लोग सावधान नही हो पाते। जहाज़ को उतरना था, वहां 2 बच्चे साइकिल चला रहे थे। लेकिन वह जल्दी ही हट गए। जहाज़ का कोई पहिया काम नही कर रहा था। जहाज़ किसी तरह घसीटते हुए ट्रैक पर उतर गया। जहाज़ के ईंधन खत्म होने के 17 मिनट बात अंततः जहाज़ रुक गया।

• इस हादसे में कितने की जान गई?

इस घटना में किसी को भी कोई नुकसान नही हुआ। किसी की जान नही गयी। सभी 61 सवार सुरक्षित रहे। 10 यात्रियों को जहाज़ के काफी दूर घसीटने तथा तेज़ी से लैंड करने की वजह से हल्की चोट आई। इस घटना को Gimli Glider के नाम से जाना जाता है। जांच में सामने आया कि जहाज़ में किलोग्राम और पॉन्ड के चक्कर में केवल आधा ही ईंधन भड़ पाया था। इस कारण पूरी समस्या हुई।